Wednesday, 6 August 2008

कच्चा तेल 3 महीने के न्यूनतम स्तर पर

लंदनः आखिरकार कच्चा तेल मांग और आपूर्ति की रिफाइनरी में आ ही गया। मंगलवार को कच्चा तेल गिरकर 118 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया जो पिछले तीन महीनों में सबसे कम है। तेल उत्पादक संगठन ओपेक के उत्पादन बढ़ाने और अमेरिका तथा यूरोप से मांग में आई कमी से गिरावट का यह रुख देखने को मिला। पिछले महीने 11 जुलाई को कच्चा तेल 147.27 डॉलर प्रति बैरल के उच्चतम स्तर पर चला गया था। ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर गतिरोध गहराने और मैक्सिको की खाड़ी में तूफान से तेल उत्पादन प्रभावित होने के बावजूद कच्चे तेल में नरमी का रुख जारी है। कारोबार के दौरान अमेरिकी लाइट क्रूड 2.70 डॉलर नीचे गिरकर 118.71 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया था। एक बार तो यह 118 डॉलर प्रति बैरल तक नीचे चला गया था। 5 मई के बाद का यह न्यूनतम स्तर है। लंदन ब्रेंट क्रूड 2.82 डॉलर गिरकर 117.86 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा था। इस साल अब तक आए ताकतवर तूफानों में शामिल इडोयूआर्ड की वजह से तेल उत्पादन, शिपिंग और रिफाइनिंग प्रभावित हुई है। लेकिन व्यापारी तेल इकाइयों में उत्पादन प्रभावित होने से उतने चिंतित नहीं है। एमएफ ग्लोबल के विश्लेषक एडवर्ड मेयर ने अपनी रिपोर्ट में बताया, 'लगता है कि तेल बाजार अब भू-राजनीतिक गतिरोध और मौसम की वजह से होने वाले दिक्कतों की तुलना में मांग-आपूर्ति संतुलन/असंतुलन को ज्यादा प्राथमिकता दे रहा है। आपूर्ति की तुलना में मांग कमजोर रहने से कच्चे तेल में ताजा गिरावट देखने को मिल रही है।' उधर, अमेरिका और यूरोप से घटती मांग, आर्थिक मंदी और ऊर्जा की बढ़ती कीमतों के आकलन के बाद ओपेक ने उत्पादन बढ़ाना शुरू कर दिया है। जुलाई में लगातार तीसरे महीने उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है। इस बीच निवेशक फेडरल रिजर्व की होने वाली बैठक में लिए जाने वाले फैसलों का इंतजार कर रहे हैं। समझा जाता है कि ऊंची महंगाई दर और आर्थिक विकास के खतरे में पड़ने से फेडरल बैंक अपनी बेंचमार्क ब्याज दर को 2 फीसदी के मौजूदा स्तर पर ही बने रहने दे सकता है। हालांकि प्रमुख तेल उत्पादक ईरान और पश्चिमी देशों के बीच परमाणु कार्यक्रम को लेकर तनाव तथा नाइजीरिया में उत्पादन प्रभावित होने से कच्चे तेल को बाजार में समर्थन मिल सकता है। मंगलवार को ईरान की न्यूज एजेंसी ने बताया कि ईरान ने यूरोपीय यूनियन को लिखित जवाब दे दिया है। ईरान परमाणु कार्यक्रम के बारे में प्रस्ताव दिया गया था जिसे छह प्रमुख देशों का समर्थन हासिल था।

No comments: