भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पैनल ने ब्याज दरों के वायदा कारोबार (आईआरएफ) को शुरू करने की सिफारिश की है। यह डेट के निवेशकों के लिए मुद्रास्फीति के दौर में ढाल का काम कर सकता है। यह सिफारिश ऐसे समय में की गई है जब डेट बाजार की यील्ड में काफी उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है। मुद्रा के वायदा कारोबार पर दिशानिर्देश जारी करने से पहले आरबीआई ने अपनी तकनीकी सलाहकार समिति की रिपोर्ट शुक्रवार को जारी की। ब्याज दर के वायदा कारोबार में एक अनुबंध किया जाएगा, जिसमें खरीदार भविष्य की तय तारीख पर डेट इंस्ट्रूमेंट खरीदने की सहमति देगा। तकनीकी समिति की सिफारिशों के अनुसार, सरकारी बॉन्ड में बैंकों के वैधानिक निवेश को 'हेल्ड टू मैच्योरिटी' वर्ग में रखने की अनुमति देने से मना कर सकता है। पैनल का मानना है कि स्थिरता सुनिश्चित करने बैंकों को अपने बॉन्ड पोर्टफोलियो को नुकसान से बचाने की अनुमति दी गई थी। ब्याज दर के वायदा कारोबार का मकसद डेट निवेशकों को स्थिरता देना है। इसी वजह से बैंकों द्वारा अपने बॉन्ड 'हेल्ड टू मैच्योरिटी' वर्ग में रखने के प्रावधान को समाप्त किया जाना चाहिए। पैनल ने कहा है कि ब्याज दर के वायदा कारोबार को सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स से मुक्त रखा जाना चाहिए। पैनल के अनुसार इस कारोबार को गति मिलने के बाद आरबीआई ऑप्शंस कारोबार शुरू करने पर भी विचार कर सकता है। बाजार के ट्रेजरी अधिकारियों का मानना है ब्याज दरों में हाल की अस्थिरता की वजह से केन्द्रीय बैंक वायदा कारोबार शुरू करने पर विचार कर रहा है। पैनल ने सिफारिश की है, वायदा अनुबंध 10 वर्ष के सरकारी बॉन्ड पर आधारित होना चाहिए। बाजार की प्रतिक्रिया के आधार पर इसका विस्तार 2 वर्ष, 5 वर्ष और 30 साल की सरकारी प्रतिभूतियों तक किया जा सकता है। आरबीआई मुद्रा के वायदा कारोबार की तरह ही ब्याज दरों के वायदा कारोबार में भी न्यूनतम पूंजी की शर्त लगाई जा सकती है। मुद्रा के वायदा कारोबार में भाग लेने वाले बैंकों के लिए 500 करोड़ रुपए की न्यूनतम पूंजी और 10 फीसदी की सीआएआर की सिफारिश की गई है। बैंकों को समग्र आधार पर जोखिम के खिलाफ सुरक्षा देने के लिए समिति ने कहा है कि बैंकों को ऐसे मदों में भी ब्याज दरों के जोखिमों को डालने की अनुमति दी जानी चाहिए, जो बैलेंस शीट में शामिल नहीं होती। तकनीकी समिति ने कहा है कि शॉर्ट सेलिंग की अवधि को भी इस तरीके से बढ़ाया जाना चाहिए कि शॉट सेल ट्रांजैक्शन की अवधि वायदा अनुबंध के समान हो जाए। समिति का मानना है कि शुरुआती दौर में केवल बैंकों और बॉन्ड हाउस को ही लंबी अवधि की शॉर्ट सेलिंग की अनुमति दी जानी चाहिए। इसके लिए भी ट्रांजैक्शन डिलीवरी आधारित होने की शर्त रखी जानी चाहिए। एक वरिष्ठ ट्रेजरी अधिकारी के अनुसार, 'वर्तमान में ब्याज दरें ऊपर की ओर जा रही हैं और ब्याज दरों के वायदा कारोबार को लेकर बहुत रुचि दिखाई जा रही है। विशेषकर बहुराष्ट्रीय बैंक इसे लेकर काफी उत्साहित हैं।' पैनल ने पहले अपनी सिफारिशों में कहा था कि बॉन्ड के वायदा कारोबार में अंतरराष्ट्रीय चलन की तरह फिजिकल सेटलमेंट करने की जरूरत होगी। बॉन्ड ट्रेडिंग में इन दिनों बड़ी भूमिका निभाने वाले विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) के लिए कार्यदल का सुझाव है कि इन्हें वायदा बाजार में लॉन्ग पोजीशन की अनुमति दी जा सकती है। इसके लिए यह ध्यान रखना चाहिए कि नकद बाजार में इनकी कुल लॉन्ग पोजीशन नकद बाजार में 4.7 अरब डॉलर की अधिकतम सीमा से अधिक न हो। -ET
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